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Alkazi Theatre Archive

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Theatre News in Natya – National and International (1958)

“The happiest feature of this widespread interest is the fact that theatre in India has survived the onslaught of the film, Radio, as we have seen, offers little competition; television is, as of yet, absent though few will be able to hazard what its impact will be on the Indian people. But the film has a predominant hold on them. The Indian film industry is amongst the biggest in the world, yet save in a handful of instances, it has failed to escape from escapism and, despite the vast resources poured into it, is lacking any intellectual content.”
—Som Benegal, ed. Natya, International Number, Theatre Around the World, 1958. 
“छठे दशक के उत्तरार्द्ध में हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में होनेवाले रंगप्रयोगों *की* प्रक्रिया में पश्चिमी तथा अपने पारंपरिक नाट्य रूपों के विभिन्न तत्वों से परिचय हुआ। ऐसे में उनकी परख के लिए नए औजारों तथा उनके अर्थ को सही परिप्रेक्ष्य में व्यंजित करनेवाली नई समीक्षा भाषा की भी तलाश भी होने लगी। साथ ही, इन प्रयोगों की सार्थकता पर भी कई तरह से वाद-विवाद हुआ।इसे ठोस आधार देनेवाली दिल्ली नाट्य संघ की अंग्रेजी त्रैमासिकी ‘नाट्य’ (संपादक –रोहित दवे, सोम बेनेगल आदि, अक्तूबर 1956) एक उल्लेखनीय प्रयास है।इस पत्रिका से रंगमंच का सैद्धांतिक और *व्यावहारिक* स्वरूप स्पष्ट हुआ और भारतीय रंगमंच के अनेक पक्षों की छानबीन भी होने लगी। पश्चिमी नाटकों–नाटककारों, भारतीय रंगमंच के प्रयोगों, पारंपरिक रंगमंच की सार्थकता, विभिन्न रंगकेंद्रों की गतिविधियों में उनकी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि और दर्शक वर्ग की अपेक्षाओं के कई बुनियादी सवाल भी सामने आए। भारतीय रंगमंच के संदर्भ में पश्चिमी नाटकों, निर्देशकों और नाट्यसमीक्षकों के अनुभवों और निष्पत्तियों की उपादेयता को जांचने परखने की शुरुआत ‘नाट्य’ पत्रिका से हुई, इससे इंकार नहीं किया जा सकता। लगभग दस वर्ष तक निकलने वाली इस पत्रिका के अनेक विशेषांक ही ‘थियेटर आर्किटेक्चर (विंटर,1959-60), ‘प्लेराइटिंग एंड प्रोडक्शन’ (समर, 1962), ‘फोक थिएटर’ (खंड 6, संख्या 4, 1962), ‘पपेट थिएटर’ (खंड 6, संख्या 5, 1962), ‘डांस ड्रामा एंड बैले’ (खंड 7, संख्या 4), ‘तेलुगु थिएटर’, (खंड 9, संख्या 2, 1966)— आज भी प्रासंगिक हैं।” 
—Mahesh Anand, Rang Dastavez: Sau Saal (1850-1950), Part 2, First Edition, NSD, 2007.

Theatre News in Natya – National and International (1958)

Images courtesy: Anand Gupt Collection/Alkazi Theatre Archives